3 वस्तुएं या कहें धीमा जेहर(Slow Poison) जो कुछ समय पूर्व या कुछ दशकों पूर्व से ही हमारे खाने या भोजन का हिस्सा बने हुए हैं। इनके आने के बाद हमारे शरीर में कई परिवर्तन हो चुके हैं और हो रहे हैं।
परिवर्तनों का सैलाब के कई कोमल एवं महत्वपूर्ण अंगों को उजाड़ रहा है। हम इस सैलाब को रोकने के लिए कुछ कदम बढ़ाना चाहते हैं ताकि हमारे अंगों को सुरक्षित रखा जा सके और हमारे जीवन को सुखी बनाया जा सके।
धीमा जेहर (Slow Poison) जो हमारे भोजन में है:-
(1) शक्कर(शुगर या चीनी)
(2) आयोडाइज्ड नमक
(3) रिफाइन्ड ऑयल (परिशोधित तेल ) एवं वनस्पति घी
1. शक्कर( शुगर अथवा चीनी)
शक्कर एक दानेदार खूबसूरत सफेद रंग का पदार्थ जिसे आजकल मिठास का पर्याय माना जाने लगा है। सभी मीठे पदार्थों की जगह यह शक्कर ले चुकी है।
गुड़, मिश्री, पिंड-खजूर को लोग अब पुराने लोगों की चीजें बताकर मुँह फेर लेते हैं। आइये जानते हैं इस खुशी के वक्त बंटने वाली मिठाई के बारे में कुछ अनजाने पहलूडॉ. विलियम मार्टिन ने 1957 में शक्कर को ज़हर बताया था।
शायद वह हज़रत अली के कथन “हरमीठी चीज़ ज़हरहै सिवाय शहद के ‘ का ही समर्थन कर रहे थे। डॉ. विलियम ने यह ऐसे ही नहीं कहा था, उन्होंने यह फ्रेंच वैज्ञानिक मेगेन्डी के प्रयोगों के निष्कर्ष के बाद कहा था।
1816 में मेगेन्डी ने 10 कुत्तों पर परीक्षण किया। उन्होंने उन कुत्तों को 8 दिन तक केवल शक्कर और पानी ही दिया। परिणामतः 8वें दिन सभी कुत्ते मरगये।
सर फ्रेंड्रीक बेंटींग (1929) जो कि इंसुलिन के सह-खोजकर्ता हैं, ने देखा कि पनामा में जो किसान रिफाइन्ड शक्कर का उपयोग करते थे उनमें मधुमेह रोग आम था।
जबकि जो लोग गन्ने खाते थे चाहे वह ज्यादा मात्रा में रोज़ाना खाते थे उनमें मधुमेह बहुत ही दुर्लभ थी.
शक्कर क्यों घातक है? आहार विशेषज्ञ शक्कर को एम्पटी या नैकेड कैलोरी कहते हैं।
इसमें कोई प्राकृतिक खनिज या पोषक पदार्थ नहीं होते। जब प्राकृतिक खनिज या पोषक पदार्थ अनुपस्थित होते हैं तो हम शक्कर (कार्बोहाइड्रेट) का पाचन पूर्ण या ठीक से नहीं हो पाता।
ये अधपचा कार्बोहाइडेटका विषैले तत्वों का निर्माण करता हैं जैसे कि पायरूविक एसिड और विकृत शर्करा जिसमें किळ. की जगह 5 कार्बन एटम होते हैं।
इसमें से पायरूविक एसिड मस्तिष्क और तंत्रिकाओं में जमा हो जाता है और विकृत शर्करा हमारे RBCs में।
इस कारण से हमारा मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है और RBCs पर इन विकृत शर्करा के जमने से हमारे शरीर की अन्य कोशिकाओं को आक्सीजन नहीं मिलती और उनका क्षय होता चला जाता है और हमारा शरीर जल्दी बूढ़ा हो जाता है और कई अन्य अंग क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।
जब हम लगातार शक्कर का सेवन करते रहते हैं तो हमारे रक्त में अधिक एसिड का निर्माण होता जाता है।
इस अधिक मात्रा में बने एसिड से बचाने के लिये रक्त, हड्डियों और दांतों से कैल्शियम को निकालकर खुद में मिलाता है जिससे हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और दाँत सड़ने लगते हैं।
अचानक से शक्कर के रूप में मिली कैलोरी की वजह से हमारे शरीर में एक कैलोरी विस्फोट होता है। इस विस्फोट से हमारे शरीर के अंग प्रत्यंग हक्के बक्के रह जाते हैं।
ऐसे में इस अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट को हमारा लिवर संग्रहित कर लेता है। जब बार-बार ऐसा होता है तो यह अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट वसा के रूप में लिवर पर जमा हो जाता है जिसे चिकित्सकीय भाषा में ‘फेटी लिवर’ कहते हैं।
इससे लिवर का कार्य प्रभावित होता है और शरीर कई रोगों से ग्रस्त होने लगता है। इसके लक्षणों में सबसे पहले पेट का फूलना, पेट में सीधे हाथ की तरफ दर्द होना और भारी लगना, जी मिचलाना या उल्टी जैसा लगना, एसिडिटी आदि हैं।
शक्कर रिफाइन्ड कैसे की जाती है
असल में शक्करका रंग पीला या भूरा होता है। इसे सफेद या चमकदार बनाने के लिये गन्नक रस में उबालते समय सल्फर डाइआक्साइड (Sulphur Di-Oxide) मिलाया जाता जिससे कि वह सुंदर चमचमाते सफेद दानों में परिवर्तित हो जाती है। यही प्रक्रिया इस साल ज़हर बना देती है।
हम सबसे ज्यादा शक्कर कैसे खाते हैं
चाय में, मिठाई में, कोल्डड्रिंक्स में (10 ग्राम प्रति 100 मि.ली. में), चॉकलेट में, आइसक में, इसे हम रोज़ाना खाते हैं।
शक्कर के हानिकारक प्रभाव
1. मधुमेह (डाइबिटीज़)
2. हृदय रोग
3. जोड़ों की समस्या
4. दांतों की सड़न
5. लकवा
6. मस्तिष्क क्षय
7. फेटी लिवर
8. कैंसर
9. चर्म रोग
10. मोटापा
11. आई.बी.एस
12. यौन समस्याएँ आदि।
शक्कर या शुगर के विकल्प:गुड़, स्टीविया, खजूर, गन्ने का रस, नॉन रिफाइण्ड भूरे रंग की शक्कर या सल्फर रहित शक्कर (परंतु कम मात्रा में)।
2. आयोडाइज्ड नमक
ठण्डे प्रदेशों और पहाड़ी प्रदेशों में रहने वाले लोगों में (किसी-किसी में) आयोडीन की कमी देखी गयी जिसके कारण उन्हें घेघा (Goitre) नामक रोग होता है।
इस रोग से बचाने के लिये अमेरिका जैसे ठण्डी जलवायु वाले देशों ने आयोडाइज़्ड नमक के लिये अभियान चलाया।
इसे देखकर हमारे और अन्य गरीब और विकासशील देशों में भी कुछ कार्पोरेट्स ने सरकार के साथ मिलकर सभी के लिये ऑयोडाइज़्ड नमक को अनिवार्य कर दिया।
और यहीं से हमारे स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ शुरू हो चुका था। आईये हम जानते हैं कि यदि हम जरूरत से ज्यादा आयोडीन (1100 mcg) प्रतिदिन व्यस्कों में और (200 mcg) प्रतिदिन बच्चों में लेते हैं तो हमें क्या-क्या समस्याएँ हो सकती है यदि हम इसे लम्बे समय तक लें तोः
1. थॉयराइड की समस्या जैसे हायपोथॉयराइडिज्म, थायरोटॉक्सिकोसिस या थॉयराइड में गठान का होना।
2. साइनुसाइटिस या सर्दी होना
3. सिरदर्द
4. डॉयरिया या दस्त
5. मुँह में धातु का स्वाद आना
6. जोड़ों की समस्या
7. लिम्फनोडका बढ़ना
8. मसूढ़ों में सूजन
9. डिप्रेशन
10. चर्म रोग आदि।
आयोडाइज्ड नमक के विकल्पः
सेंधा नमक, खड़ा या देशी नमक।
आयोडीन नमक के प्राकृतिक स्त्रोत:
भारत की सभी सब्जियों, फलों एवं मांस में आयोडीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
ध्यान देने योग्य तथ्य:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O) ने भारत को आयोडीन की कमी वाला देश नहीं बताया है लेकिन दुर्भाग्य से हमारा देश दुनिया का सबसे ज्यादा आयोडाइज़्डनमक खाता है।
3. रिफाइन्ड ऑयल या परिशोधित तेल एवं वनस्पति घी
तीसरा ज़हर आपके खाने में रिफाइन्ड तेल एवं वनस्पति घी है। लगभग 100 मिलियन टन तेल हम भारतीय प्रतिवर्ष खाते हैं।
इस तेल के आने के बाद हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का लवल काफी बढ़ा है और हृदयाघात के रोगियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है।
शायद आपका पता होगा कि आपके नाना या दादा यदि अमीर थे तो वे 100 ग्राम से 200 ग्राम घा प्राता खाते थे और उनका वसा का स्तरबिल्कलसामान्य रहता था और हृदय सबधा काइबाना उन्ह नहीं था।
लेकिन आजकल हम एक चम्मच तेल खाते हैं तो वह हमारेकोलेस्ट्रॉल को दिन प्रतिदिन बढ़ाता जाता है।
तेल एवं वनस्पति घी की रिफाइनिंग याशोधन कैसे किया जाता है:
प्राकृतिक तेल को रिफाइंड किया जाता है ताकि उसके गंध, रंग ओर स्वाद को बाजार की माँग अनुसार किया जा सके।
इन तीन उद्देश्यों की पूर्ति के लिये इस तेल को कुछ भौतिक और रासायनिक प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता है। जिसे ऑइल रिफाइनिंग कहते हैं।
इसके अंतर्गत तेलको पानी से धोना, साबुन का मिलाना, वेक्यूम में बहाना, गर्म करना, ठण्डा करना, फिल्टर करना. फिरतेल को रंगीन करना, अंत में उच्च दबाव में भारी धातु जैसे निकिल की मौजूदगी में दाइडोजिनेशन करना।
इन सब प्रक्रियाओं से निकलकरतेल रिफाइन्डहो जाता है।
रिफाइन्ड ऑयल के दुष्प्रभाव:
निकिल जैसी धातु की मौजूदगी में हाइड्रोजिनेट हुए इस तेल को खाने से फेफड़ों के रोग, लिवर की खराबी, त्वचा के रोग, चयापचय की गड़बड़ी, गर्भस्थ शिशु पर घातक असर आदि समस्याएँ हो सकती हैं।
ये निकिल जैसी भारी धातु सभी रिफाइन्ड ऑयल में पायी जाती है चाहे वह तेल निर्माता कंपनियाँ अपने विज्ञापनों में कितना ही अपने आपको अच्छा साबित करें, लेकिन वह अत्यंत घातक प्रभाव डालता ही है हमारे कोमल अंगों पर।
जो तेल जितना खूबसूरत दिखे समझ जाइये कि वह उतना ही घातक है।
अन्य दुष्प्रभाव:
कैंसर, हृदय रोग, किडनी की समस्याएँ, एलर्जी, अल्सर, जल्दी बुढ़ापा, नपुंसकता, कोलेस्ट्राल का बढ़ना, जोड़ों की समस्याएँ आदि।
रिफाइन्ड ऑयल के विकल्पः
शुद्ध घी, जैतून का तेल, कच्ची घानी का तेल या नॉन रिफाइण्डऑयल आदि।
पुनश्चः
वर्षों से हमारे खाने का अभिन्न अंग बन चुके ये सुंदर ज़हर शायद आप छोड़ना नहीं चाह रहे हों या यह अध्याय ही आपको बेकार लग रहा हो।
लेकिन यह एक कटु सत्य है जिसका आभार आपको शीघ्र ही हो जायेगा या हो रहा होगा।
इन तीनों धीमे जहर(Slow Poison) को आज ही अपने खानपान से निकाल फेंकिये अपने परिवार के सुखद और स्वस्थ भविष्य के लिये।